विश्वभर में दलाई लामा का 85वां जन्मदिन मनाए जाने के साथ ही अमेरिका ने तिब्बती धर्मगुरु को 1959 से शरण देने के लिए भारत को धन्यवाद दिया है। चीन द्वारा 1959 में तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद से ही दलाई लामा भारत में रह रहे हैं। तिब्बत की निर्वासित सरकार, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से संचालित होती है। भारत में लगभग 1,60,000 तिब्बती रहते हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग के दक्षिण और मध्य एशियाई ब्यूरो ने सोमवार को ट्वीट किया, ''परम पावन दलाई लामा को 85वें जन्मदिन की शुभकामनाएं। आपने तिब्बती लोगों और उनकी धरोहर के प्रतीक के रूप में दुनिया को शांति और दयालुता से प्रेरणा दी है। 1959 से परम पावन और तिब्बती लोगों को शरण देने के लिए हम भारत को धन्यवाद देते हैं।''
अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने भी तिब्बती धर्मगुरु को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं। उन्होंने ट्वीट किया, ''दलाई लामा आशा के दूत हैं। दया, धार्मिक सद्भाव, मानवाधिकार, तिब्बती लोगों की संस्कृति
और भाषा की रक्षा करने में उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन की अहम भूमिका है।''
पेलोसी ने कहा कि यह दुखद है कि परम पावन और तिब्बती लोगों की इच्छाएं पूरी नहीं हो सकी हैं क्योंकि दमनकारी चीन की सरकार ने लोगों को प्रताड़ित करने का अपना अभियान चालू रखा है। उन्होंने कहा कि बीजिंग द्वारा जिनका उत्पीड़न किया जा रहा है, उनके बचाव में अमेरिकी संसद ने हमेशा एक स्वर से आवाज उठाई है और हमेशा उठाते रहेंगे।
जनवरी में प्रतिनिधि सभा के डेमोक्रेट सदस्यों ने तिब्बती लोगों के अधिकारों के समर्थन में तिब्बत नीति और समर्थन कानून का पक्ष लिया था। इस कानून के तहत अमेरिका का पक्ष स्पष्ट है कि अगर 14वें दलाई लामा के चुनाव में बीजिंग की ओर से हस्तक्षेप किया जाता है तो यह तिब्बती लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। पेलोसी ने कहा, ''सीनेट को इस कानून को अवश्य पारित करना चाहिए और अमेरिका, दलाई लामा और तिब्बती लोगों के बीच दोस्ती के रिश्ते का समर्थन करना चाहिए।''
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